Saturday, March 10, 2018

आवाज़ से पहचान

आर्यनगर में काउंसलर के ऑफिस में उसदिन मैं वाणिज्यकर (तब वैट लागू ही हुआ था) के केस की तैयारी कर रहा था । तैयारी अंतिम चरण पर थी कि तभी काउंसलर के पास एक फोन आ गया । वार्तालाप से लगा कि व्यक्तिगत विषय है इसलिए मैंने केबिन से बाहर आकर दरवाजा बंद कर दिया ।

बाहर अन्य क्लाइंट्स बैठे हुए थे । वहीं पर खाली कुर्सी पर मैं भी बैठ गया तो स्टाफ ने पूछा,  "क्या आपके केस की तैयारी हो गयी है ?"
- हाँ, लगभग हो ही गयी है ।
- भइया, करा लीजिये । कल कमिश्नर के पास पेशी है ।
- जी, त्रिवेदी जी फोन पर बात कर लें। बस अंतिम बिंदु पर चर्चा और पेपर्स तैयार करने रह गए हैं।
- तब ठीक है । हो ही गया समझो ।
इतना कहने के बाद स्टाफ ने सामने बैठे क्लाइंट्स से कहा,"इनके(मेरे) केस के बाद साहब लंच करेंगे इसलिए आप लोग एक डेढ़ घण्टे बाद आ जाएँ । कुछ उठ गए और कुछ बैठे रहे। उनमे से एक क्लाइंट ने कहा - अब कहाँ हम जाएंगे। मैं यहीं प्रतीक्षा कर लूँगा ।
- जैसा आप उचित समझें ।

तभी वह क्लाइंट घूमा और मुझे सम्बोधित करते हुए कहा - आपकी आवाज़ मेरे एक मित्र से मिलती है।

मैं मुस्कुराया और बोला - सच कहूँ तो आज पहली बार किसी ने मेरी आवाज  को किसी से मिलती जुलती कहा है वरना अभीतक तक 15-17 लोगों को मेरा चेहरा ही उनके किसी अपने या किसी चिरपरिचित के जैसा लगा है ।

- नहीं नहीं आप इसे मज़ाक न समझें । मैं सच कह रहा हूँ ।

- अच्छा जी । कहाँ के रहने हैं आपके मित्र जिनसे मेरी आवाज मिलती है ?

जिज्ञासावश मैने पूछा तो उन्होंने कहा- यहीं कानपुर के हैं ।

यह सुनकर मेरी जिज्ञासा और बढ़ी और पूछा - कानपुर! कानपुर में कहाँ ?

- के ब्लॉक किदवईनगर ।

मैंने आश्चर्य से उन्हें देखा और धड़कते हृदय के साथ उनसे पूछा - आपके मित्र का नाम क्या है?

अबतक वहाँ उपस्थित अन्य सभी क्लाइंट और स्टाफ भी हमारे वार्तालाप को बहुत गौर से सुन रहे थे ।

- जय भारद्वाज ।

अब मैं सन्न था और एकटक उनके चेहरे को देखकर उन्हें पहचानने का प्रयास कर रहा था किन्तु मस्तिष्क संज्ञाशून्य हो चुका था ।

मैने देखा कि स्टाफ हौले हौले मुस्कुरा रहा था । स्वयं को संयत करते हुए मैंने बहुत धीमी आवाज़ में पूछा - आपका  नाम क्या है?

 - $@ दीक्षित ।

उफ्फ ये क्या हो रहा था । न मुझे यह नाम याद आ रहा था और न ही यह सूरत । कोई विशिष्ट और घनिष्ठ व्यक्ति ही होना चाहिए क्योंकि यहाँ पर बहुत कम शब्दों के वार्तालाप के बाद ही इन्होंने आवाज़ पहचान ली थी ।

तभी स्टाफ की आवाज़ ने मुझे इस भँवर से निकाला जो दीक्षित जी से कह रहा था - यही तो हैं भारद्वाज जी , आपके वही मित्र ।

- क्या सच में?

उन्होंने मुझे गौर से देखा और उठकर हाथ मिलाया । उनकी हथेली को अपने दोनों हाथों में थामे हुए मैंने उनकी आँखों में आँखे डालते हुए कहा - क्षमा करना किन्तु मैं अभी भी नहीं पहचान सका ।

मुस्कुराते हुए वे बोले - मैं लक्ष्मी का हसबैंड ...

- ओह हो हो ..
मैंने तुरन्त हाथ छुड़ाया और उनके चरण स्पर्श करने के झुक गया किन्तु उन्होंने मुझे ऐसा करने से रोकते हुए कहा - नहीं नहीं, भाई साहब, आप बड़े हैं । इतना सम्मान ही काफी है ।

वे मेरे परममित्र की छोटी बहन के पति थे जो पिछले 10 -12 वर्षों से युगांडा रह रहे थे । अभी कुछ दिन पहले ही शहर आये थे और अब अपने व्यवसाय के पंजीकरण आदि के लिए यहाँ उपस्थित थे । युगांडा जाने के कुछ वर्ष पहले तक उनसे कई बार मैं मिला था और मित्रवर के घर पर उनके साथ बहुत सी लम्बी बैठकें भी हुईं थीं।

- दीक्षित जी, क्षमा करना मैं आपको पहचान नहीं सका । एक तो अप्रत्याशित और दूसरे बहुत कुछ बदलाव ।

- बदलाव तो आपके शरीर पर बहुत हुआ है । कहाँ वह स्लिम ट्रिम काया कहाँ यह मांसल शरीर और उस चिकने चॉकलेटी चेहरे के स्थान पर ये रोबीली मूँछे । मैं भी तो नहीं पहचान सका आपको ।

कहते हुए वे हँस पड़े तो वहाँ उपस्थित सभी लोग भी हँस पड़े ।  तभी काउंसलर की आवाज़ सुनकर मैं केबिन के अंदर चला गया ।

बाद में मैं सोचने लगा कि क्या उँगलियों की छाप, आँखों की पुतलियों की छाप, चेहरे की बनावट, शरीर के अंगों के मस्से, तिल व चोट आदि के निशान के साथ ही साथ किसी की आवाज़ भी इतनी सहायक हो सकती है कि उसे 10-15 वर्षों के बाद भी आसानी से पहचाना जा सके !!

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