kabhee - kabhee ~~~~ कभी - कभी
Monday, April 13, 2015
कलश का दीप
जब कलश का दीप सहसा थर-थरा बुझने लगा
विश्वास का अवलम्ब जब हिलने लगा ढहने लगा
जब स्वयं के बिम्ब से ही मन - हृदय डरने लगा
तब ये जाना 'जय' विभव का सूर्य अब ढलने लगा
(चित्र सौजन्य : गूगल)
Friday, February 6, 2015
'अपने'
जब कभी होने लगे साकार सपने
लेने लगे छोटे - बड़े आकार सपने
छँट गयी एकांत की 'जय' धुंध तब
जुड़ गए हैं प्रेम का ले भार 'अपने'
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)