Friday, October 25, 2013

परदेशी सजन !


     
मौक़ा भी है, दस्तूर भी है और हसीं रात है 
तुम हमसे बहुत दूर हो, इतनी सी बात है॥ 
परदेशी सजन! तुमको दिखते डालर-ओ-दीनार 
क्या सच में, इनपे ही टिकी हुयी कायनात है ॥ 

तुम्हे याद करके, मुस्कुराना, सिहर जाना 
नाराज खुद से होना, शरमा के सिमट जाना 
हम पलकें बिछाए बैठे हैं, अब आ भी जाइये 
शीत में भी जल रहा, मेरा कोमल गात है ॥
तुम  हमसे बहुत दूर हो, इतनी  सी बात है॥ 

सन्देश तुम्हारे मुझे मिलते रहे हैं रोज ही 
ठहरी सी ज़िन्दगी लगे है मुझको बोझ सी 
मरती  हैं  उमंगें मेरी 'जय' सुबह हर शाम 
देखतें हैं साँसे देती कब तक मेरा साथ है ॥ 
तुम हमसे बहुत दूर हो, इतनी सी बात है॥ 

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