Friday, October 25, 2013

बँटवारा : एक दु:स्वप्न


आज हमें कुछ स्वप्न दिखे हैं, अपनी देहरी गलियारे में
दुबकी   सी    इच्छाएं   देखी,   लम्बे चौड़े चौबारे में
सहमे - सहमे खेत सभी  हैं, ठिठक रहे खलिहान हमारे
बाग़ - बगीचे रुदन कर रहे, सिकुड़ -सिमट अँधियारे में

सिसक रही वह जगह जहाँ पर कभी पेड़ था दाड़िम का
 उपहासित हो रहा आज वह , तुलसी - चौरा आँगन का
चौपाये  सब  देख  रहे  है घर  के बंद किवाड़ों  को
उल्टी  पडी   दुधाडी  रोये ,   बुझे  -  बुझे दुधियारे में
आज हमें कुछ स्वप्न दिखे हैं, अपनी देहरी गलियारे में

उठने  लगी  दीवारें अब तो घर के आँगन - कमरों में
तेरा   मेरा  बन   कर  के बँट रहा बरोठा टुकड़ों  में
दादी - अम्मा की खटिया अब , दरवाजे बाहर पडी हुयी
चरही   ऊपर   बनी  घडौची , चूल्हा है  भुसियारे  में
आज हमें कुछ स्वप्न दिखे हैं, अपनी देहरी गलियारे में

बच्चों पर प्रतिबन्ध लगा है,इधर न जाना,उधर न जाना
बेचारे वे उलझ गए हैं, क्यों  न जाना, किधर ना  जाना
बच्चे तो बच्चे हैं 'जय' , क्यों न बड़ों की समझ में आये
अलग   रहे   तो   टूट जायेंगेताकत है सझियारे में
आज हमें कुछ स्वप्न दिखे हैं,  अपनी देहरी गलियारे में
       

(देहरी=दहलीज; चौबारा=छज्जा(बालकनी); दाड़िम=अनार; दुधाडी=दूध की हाँडी; दुधियारा=वह स्थान जहां पर उपले जला कर ढूध की हाँडी रखी जाती थीबरोठा=बरामदा; चरही=जानवरों को चारा खिलाने का स्थायी स्थानघडौची=पानी भरे घड़े/बाल्टी आदि रखने का स्थान; भुसियारा= भूसा रखने की कोठरी; सझियारा=एकता)

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