Saturday, August 7, 2010

पर मेरा दिमाग मत खाओ



मद्यपान करते ही नहीं तो कैसे तुमको 'पिया' कहूं
यदि मुझसे डर कर शरमाओ तो मैं तुमको 'मियाँ' कहूं

बांके और छबीले होते तो निश्चित तुम 'सजन' कहाते
लज्जावान विनम्र जो होते तो मुझसे तुम 'सनम' कहाते

मैं तुमको 'साजन' ही कहती यदि होते जैसे हो बसंत
स्निग्ध त्वचा के स्वामी होते तो तुम कहला लेते 'कंत'

'प्राणनाथ' तो वह होता है जो प्राणों में हो रचा बसा
हर मन में जब ईश बसा तो 'हृदयेश्वर' भी नहीं कहा

पत्ती जैसे थर थर कांपो तो मैं 'पति' कह दूंगी आज
बिन पगड़ी साफा के कैसे मैं बोलूँ तुमको 'सरताज'

हँस हँस कर यदि धुनें निकालो तो 'हसबैंड' कहे जाओगे
बिन बिन कर यदि खाते फिरते तो 'खाविंद' कहे जाओगे

'जीवन का साथी' कैसा जब जीवन ही हमको पता नहीं
क्या कह कर मैं तुम्हे पुकारूं कुछ भी हमको पता नहीं


आवारा पागल मस्ताना भ्रमर पथिक या 'जय' कह लो
ए जी, ओ जी, अरे, सुनो जी,या जो मन भाए सो कह लो !!

4 comments:

  1. जय जी, आप चिटठा जगत और हमारीवानी से अपने ब्लॉग को जोड़ लें, आपकी इतनी सुन्दर रचनाए लोग नहीं पढ़ पा रहे हैं

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  2. नीलेश जी , हमें क्या करना होगा इसके लिए ? कृपया परामर्श दें /

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