Saturday, August 28, 2010

तुम्हारी याद


भोर की प्रथम किरण
और तुम्हारी याद
क्योँ आती है एक साथ ।

तुम्हारे माथे की बिंदी की भाँति
उगता हुआ सूरज
न जाने क्योँ मैँ देखता हूँ
उसे तब तक
एकटक
तुम्हारे मधुर चुम्बनोँ का आभास दिलाती हुई
सुबह की कोमल किरणेँ
जब तक सहला न देँ
मेरे केश और ललाट ।
भोर की प्रथम किरण
और तुम्हारी याद
क्योँ आती है एक साथ ।।

इन्ही स्मृतियोँ मेँ निकलता है दिन
और आती है साँझ
फिर घनी हो जाती है तुम्हारी याद
तब डसने लगते हैँ एकाकीपन के
विषैले नाग
बिस्तर पर बैठा हुआ मैँ
भागता हूँ पूरे कमरे मेँ
मैँ चीखता हूँ चिल्लाता हूँ
निःशब्द बिना आवाज
तुम चली गयी हो 'जय' बहुत दूर
अब कभी न आने के लिए
प्रिये ! बुला लो मुझे भी अपने पास ।
भोर की प्रथम किरण
और तुम्हारी याद
क्योँ आती है एक साथ ।।

Sunday, August 15, 2010

मेरो प्यारो बैरी पिया





प्रिय हेरत हेरत दिन निकरो, अब बीति रही है यो रतिया
बिरहन को ताप बढ्यो ऐसो, के बरस गयीं दोनों अँखियाँ

जब ढरकि चल्यो दृगजल गालन ते, भीजि गयीं चोली अंगिया
ना ताप पे शीत बिगरि जाए, अंगिया खोलि गयीं सखियाँ

कैसो यह तेरो प्यार है 'जय', मैं नेह में बन गयी जोगनिया
अब कौन सो बदला लेने लग्यो, मुझसे मेरो प्यारो बैरी पिया

Saturday, August 7, 2010

पर मेरा दिमाग मत खाओ



मद्यपान करते ही नहीं तो कैसे तुमको 'पिया' कहूं
यदि मुझसे डर कर शरमाओ तो मैं तुमको 'मियाँ' कहूं

बांके और छबीले होते तो निश्चित तुम 'सजन' कहाते
लज्जावान विनम्र जो होते तो मुझसे तुम 'सनम' कहाते

मैं तुमको 'साजन' ही कहती यदि होते जैसे हो बसंत
स्निग्ध त्वचा के स्वामी होते तो तुम कहला लेते 'कंत'

'प्राणनाथ' तो वह होता है जो प्राणों में हो रचा बसा
हर मन में जब ईश बसा तो 'हृदयेश्वर' भी नहीं कहा

पत्ती जैसे थर थर कांपो तो मैं 'पति' कह दूंगी आज
बिन पगड़ी साफा के कैसे मैं बोलूँ तुमको 'सरताज'

हँस हँस कर यदि धुनें निकालो तो 'हसबैंड' कहे जाओगे
बिन बिन कर यदि खाते फिरते तो 'खाविंद' कहे जाओगे

'जीवन का साथी' कैसा जब जीवन ही हमको पता नहीं
क्या कह कर मैं तुम्हे पुकारूं कुछ भी हमको पता नहीं


आवारा पागल मस्ताना भ्रमर पथिक या 'जय' कह लो
ए जी, ओ जी, अरे, सुनो जी,या जो मन भाए सो कह लो !!