Thursday, May 20, 2010

अधमों को भी अधम बना दे

देखा एक दृश्य अलबेला , मैंने श्मशान के ढाल में
काक मांस को पका रही चांडालिनि, मनुज कपाल में
बना लिया था शव अवयवों को , वैकल्पिक ईंधन का रूप
सहसा उलझा प्रश्न एक तब , मेरे वैचारिक जाल में

हे चांडालिनि ! परम अधम तू , और भूमि अवशिष्ट यह
परम हेय है पात्र तुम्हारा , काग मांस भी अति निकृष्ट है
शव के अवयव बने हैं ईंधन , फिर भी पात्र ढका क्यों है
इन अधमों को भी अधम बना दे , ऐसा क्या अपविष्ट है

वह चांडालिनि हँसी और फिर , बोली मुझसे " हे ! 'जय ' जी ,
सत्य कहा , मैं अधम नारि हूँ , यह स्थान भी त्याज्य सही
ईंधन, पात्र अधम है भोजन , फिर भी ढका पात्र इस कर
कोई राष्ट्रद्रोही आ जाये , तो पड़ न जाए पद धूलि कहीं

1 comment:

  1. हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

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