Wednesday, May 12, 2010

दीप जलें तो दिल जलता है

दीप जलें तो दिल जलता है , रात ढले तो नयन हैं रोते /
स्मृतियों के घने मेघ अब , मेरे अंतर्मन को भिगोते //
मैं शिलाखंड सा मूढ़ मति , तुम अविरल प्रपात सी आ के मिली
सानिध्य मिला जब मुझे तुम्हारा , कालिमा मेरी सब बह निकली
मैं शुभ्र धवल और नवल हुआ , अथवा अपराध विहीन हुआ
कृमशः वह पत्थर क्षरित हुआ , और मूर्ति बनी उजली उजली
वो तुम ही हो जिसके कारण , पत्थर को सब नत हैं होते /
दीप जलें तो दिल जलता है , रात ढले तो नयन हैं रोते //
तुम अमर बेल सी मृदु लतिका , क्यों कीकर ही का चयन किया
उसके तीक्ष्ण दीर्घ कंटक , क्यों कोमल तन पर सहन किया
यद्यपि तुम हो बिना मूल की , किन्तु स्वयं आधार बन गयीं
मुझे सहेजा और संवारा , नव सुखद सुकोमल सृजन किया
वो तुम ही हो जिसके कारण , कांटे भी सम्मानित होते /
दीप जलें तो दिल जलता है , रात ढले तो नयन हैं रोते //
कुछ ही मधुमास व्यतीत हुए , तुम बनी हमारी मर्यादा
जीवन था कितना सौम्य सरल , सरस सजीवन सीधा सादा
भृकुटि तनी फिर क्रूर काल की , ध्वस्त हो गए स्वप्न सुहाने
नीव हिल गयी भव्य भवन की , बचा रहा ' जय ' खंडहर आधा
कभी क्षितिज तक भरी उड़ानें , आज उदधि में खाएं गोते /
दीप जलें तो दिल जलता है , रात ढले तो नयन हैं रोते //

No comments:

Post a Comment