Monday, February 22, 2010

अब आ भी जाइये

दिन आ गए बहार के , अब आ भी जाइये
आँखों में बनके ज्वार अब , छा भी जाइये
मतवाला करने वाली , पुरवाई बह रही है
बौरों को सहेजे हुए , अमराई कह रही है
" बाहों में मुझे लेकर , मुझमे ही समा जाओ "
कोयल की कूक मन में , एक हूक दे रही है
भौरों की तुम पुकार ले , अब आ भी जाइए
दिन आ गए बहार के , अब आ भी जाइये
खेतों में पीले सरसों , लहरायें जैसे आँचल
इठलाती साफ़ नदिया , आँखों में जैसे काजल
महुए की गंध मन में , उकसाए भाव रह रह
रचते हैं रूप अनुपम , वर्षा में जैसे बादल
होंठों में तुम मल्हार ले , अब आ भी जाइये
दिन आ गए बहार के , अब आ भी जाइये
मधुमास हैं सुहाने , कहते हैं मधु के छत्ते
है नव सृजन की बेला , कहते हैं नए पत्ते
विस्मय नहीं तनिक भी , चंचल हुआ हृदय जो
अंगड़ाईयां भी रह रह , आती हैं अब इकट्ठे
बाहों में ढेरों प्यार ले , अब आ भी जाइये
दिन आ गए बहार के, अब आ भी जाइये
आँखों में बनके ज्वार अब , छा भी जाइये

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