Monday, January 31, 2022

क्या मिला..

 

हो एकाकी 

जब स्वयं को खोजती हो।

क्या मिला..

कूल जिसके विरह व दुःख

आँसुओं की वह नदी हो।।1।।


पय भरा हो वक्ष में

पर गोद में हो सूनापन..

जो बरसने को हो आतुर

श्यामा बदली एक घनी हो।

हो एकाकी

जब स्वयं को खोजती हो।।2।।

क्या मिला..


जिसके उपवन लालसा के

जल गए हों फूलते ही,

युवा तन की चाहना जिसे

याचना में ना मिली हो।

हो एकाकी 

जब स्वयं को खोजती हो।।3।।

क्या मिला..


तप्त सूरज की किरण सा

दग्ध कर सकती भुवन को,

नन्हीं सी वो वह्निका जो

भस्म में किंचित छुपी हो।

हो एकाकी 

जब स्वयं को खोजती हो।।4।।

क्या मिला..


लोष्ठवत जिसके लिए है

जगत जी धन-सम्पदा सब,

शुभ्रवसना, बिन आभूषण

गरिमामयी पटरानी सी हो।

हो एकाकी

जब स्वयं को खोजती हो।।5।।

क्या मिला..


हास और परिहास करती

रिक्तता की देवी जो

उन्मुक्त हो कर हँस सके ना

ऐसी एक निश्छल हँसी हो।

हो एकाकी

जब स्वयं को खोजती हो।।6।।

क्या मिला..


तुम सृष्टि की हो विडम्बना

या कोई अभिशप्त पत्थर!

राम-पद की लालसा में

जो अहिल्या सी पड़ी हो।

हो एकाकी

जब स्वयं को खोजती हो।।7।।

क्या मिला..


प्रकृति का पर्याय बन कर

रति का जो प्रतिबिम्ब है,

अलि प्रतीक्षा में नयन हों

ऐसी एक कुसुमित कली हो।

हो एकाकी 

जब स्वयं को खोजती हो।।8।।

क्या मिला..


दिव्या हो तुम साधिका सी

नामवाली अनामिका हो

तुम धरा सी सौम्या हो

धैर्य रूपी सरला सी हो।

हो एकाकी

जब स्वयं को खोजती हो।।9।।

क्या मिला..


मन मयूरा चाहकर भी

जिसका नर्तन कर सका ना,

दीपिका की वर्तिका सी

'जय' शिवालय में जली हो।

हो एकाकी 

जब स्वयं को खोजती हो।।10।।

क्या मिला..


वह्निका - चिंगारी

लोष्ठवत - मिट्टी के ढेले के समान

अलि - भ्रमर, प्रियतम, पति

वर्तिका - रुई की बाती

Monday, September 20, 2021

पीला गुलाब


.                      (कहानी)

रचनाकार : जयसिंह भारद्वाज

बालकनी में रखे गमलों में पानी स्प्रे करते समय देखा कि एक गमले में गुलाब का एक पीला फूल एक छोटी सी कली के साथ मुस्कुरा रहा था। मैं सहसा ठिठक गया और हृदय से एक स्वर उभरा .."सुधा" और साथ ही फिराक गोरखपुरी का यह शे'र भी:

'एक मुद्दत से तेरी याद भी आयी न मुझे

और हम भूल गए हों तुझे, ऐसा भी नहीं'

...........#..........

सुधा.. मेरी जीवनसंगिनी।

बेटा दस वर्षों का हो गया और तुम्हें एक बेटी भी चाहिए थी। हमने प्रयास किया था किंतु पिछले वर्ष जाड़ों में मिसकैरिज हुआ और हम फिर से खाली हाथ रह गए।

इस बार हमने खूब सावधानी रखी। बराबर चिकित्सकों के सानिध्य में रहे और फिर उनके द्वारा हमारी खुशियों के लिए मई माह के प्रथम सप्ताह को निश्चित कर दिया गया। हम प्रसन्न थे, तुम तो बहुत अधिक प्रसन्न थीं।

फरवरी में तुमने एक दिन कहा था कि घर में एक पीला गुलाब लगा दो। जब मैंने इसका कारण पूछा तो तुमने कहा था कि पीले रंग में वात्सल्य छुपा होता है। पीला रंग नवजीवन का प्रतीक है। पीला रंग बसन्त ऋतु का रंग है। मैं अपनी बेटी के साथ पीले गुलाब के फूलों से खेलूँगी। एक गमले में मैंने पीले गुलाब की कटिंग लगा दी थी। आशा थी कि अप्रैल के अंतिम सप्ताह तक इसमें फूल आने लगेंगे तभी हमारी गोद में भी एक फूल आ चुका होगा।

..............#............

विवाह के इन बारह नकारात्मक वर्षों में मैंने तुम्हारे अंदर पिछले दो वर्षों में सकारात्मक परिवर्तन देखे थे। मुझे आश्चर्य हुआ था यह जानकर कि अब तुम मेरी अम्मा, भाभियों और बहनों से बराबर बात करती रहती हो। जबकि पहले इनका नाम सुनकर ही तुम्हारा रक्तचाप  बढ़ जाता था। 

कभी अम्मा को अपने पास रखने या घर मे कुछ आर्थिक सहायता करने की इच्छा व्यक्त की तो तुमने सदैव मना ही किया किन्तु मुझे मेरे अम्मा और भाई भाभियों से बहुत प्यार है इसलिए मुझे जो करना होता था वह कर ही लेता था। शायद गर्भावस्था के कारण बदलते हुए हार्मोन्स से तुम्हारी प्रवृत्ति में सुखद परिवर्तन आये होंगे।

एक बार तुम्हारे पापा से तुम्हारी आदतों की वजह जाननी चाही थी तो उन्होंने बताया था कि तुमने बचपन से तुम्हारे पापा को तुम्हारे चाचा और भतीजों की हरसंभव आर्थिक सहायता करते देखा था और जब पापा को पैरालाइसिस का अटैक आया और पैसों की जरूरत हुई तो कोई चाचा भतीजा सामने नहीं आया था। इस घटना ने तुम्हारे मन मे गहरी छाप छोड़ी थी। इसी कारण तुम पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर मुझको मेरे परिवार से पृथक रखना चाह रही थीं।

तुम भले ही एक अच्छी बहु, देवरानी या भाभी न बन पायीं हो किन्तु एक अच्छी माँ और केयरिंग पत्नी अवश्य थीं। मुझे कब, कहाँ और क्या चाहिए.. वह सब समय पर सुनियोजित मिल जाता था।

.......... # ...........

मार्च माह में तुम्हें कोरोना डायग्नोस हुआ। बस... तुम तो जैसे गुमसुम हो गयी थीं। अगले टेस्ट में मुझे और बेटे को भी पॉजिटिव पाया गया था। तीनों ही अपने रूम में क्वारन्टीन हो गए थे। औषधियों के साथ योगा व काढ़ा भी लिया जाता रहा और अप्रैल के प्रथम सप्ताह में हम तीनों ही निगेटिव आ गए। हाँ, अभी भी हमें सावधानी रखनी थी और हम रख भी रहे थे। तुम्हारी प्रेग्नेंसी पूर्णकालिक हो चली थी और हमें आशा थी कि मई के प्रथम सप्ताह के बजाय अप्रैल के अंतिम सप्ताह में ही हमें हमारी खुशी मिल जाएगी।

20 अप्रैल को अचानक तुम्हारा ऑक्सीजन लेवल गिरने लगा और इतना कम हो गया कि स्त्रीरोग विशेषज्ञ ने अविलम्ब भर्ती करने को कहा। तुम कोरोना सेंटर में भर्ती हो गईं और ऑक्सीजन का स्तर भी बढ़ने लगा। तुम प्रतिदिन वहाँ उपस्थित डॉक्टर से मेरी बात कराने लगीं थी ताकि दिन प्रतिदिन के अपडेट्स मुझतक पहुंचते रहे। तुम स्वयं भी रिकवरी से उत्साहित थीं। फोन पर तुम एक बार पीले गुलाब के पौधे का ज़िक्र अवश्य करतीं थी।

26 अप्रैल को डॉक्टर ने बताया कि ऑक्सीजन का स्तर 85 है और यदि 90 तक आ गया तो आपातकाल से हटा दिया जाएगा। मुझे सन्तुष्टि मिली थी। तुम भी खुश थीं।

अगले दिन 2 बजे दोपहर अस्पताल से फोन आया और मुझे बुलाया। पहुंचने पर बताया कि हालात अचानक बिगड़े हैं अतः वे बेबी को बचाना चाह रहे हैं और इसके लिए ऑपरेशन करना होगा। यह ऑपरेशन जच्चा व बच्चा दोनों के लिए घातक था लेकिन वे चांस लेना चाह रहे थे और इसके लिए मुझे बॉन्ड साइन करना था। विकल्प नहीं था। हस्ताक्षर कर दिए।

रात्रि आठ बजे फोन मिलता है कि बेबी गर्ल को नहीं बचाया जा सका और तुम्हें वेंटिलेटर पर लाइफ स्पोर्ट पर रखा गया है।

हृदय में भय और आशंका इतनी प्रबल हो चुकीं थीं कि लगने लगा कि तुम अब इस दुनिया में नहीं हो। शायद डॉक्टर्स ने एक साथ दोनों की मृत्यु की सूचना न देकर मुझे भरमाया है। मेरी आँखें सजल थीं। 

सोने से पहले बेटे ने मम्मी के बारे में पूछा था। मेरी आँखों में आँसू देखकर उसने कहा था, "पापा, प्लीज रोइये नहीं। मम्मी ठीक हो कर आ जाएंगी साथ में मेरी बहन भी लाएंगी.. है न!"

मैं क्या बताता कि बहन तो अब आने से रही और मम्मी का भी भरोसा नहीं है।

रात्रि दो बजे फोन की घण्टी बजी। धड़कते दिल और काँपते हाथों से उठाया। गीली आँखों ने देखा .. अस्पताल से ही काल थी.. हेलो

- जी हाँ, जयसिंह बोल रहा हूँ

- सिंह साहब, बैड न्यूज! हम आपके पेशेंट को नहीं बचा सके। कृपया प्रात: अस्पताल में आकर बॉडी पहचान कर क्रीमेशन के लिए ले जायँ। सारी व्यवस्था सरकार की तरफ से है।

सुधा अब सुधा नहीं रहीं। तुम बॉडी बन चुकी थीं।

............#............

नौकरी के कारण हम शहर में कमरा ले कर रह रहे थे। अब ट्रांसफर हो गया है। मेरी एप्लिकेशन पर कोई विचार नहीं किया गया। अंततः बेटे को नाना नानी की इच्छा पर उनके साथ रहने को छोड़ दिया और अपनी गृहस्थी समेट कर नए स्थान पर ले आया हूँ। आज 15 अगस्त का अवकाश था। सोचा गमलों को ठीक कर दूं। तभी मुस्कुराते हुए पीले गुलाब के एक फूल को देखा और साथ में एक नन्ही कली को..मेरे आँसुओं से बेखबर वे दोनों हवा में लहराते हुए बड़े प्रसन्न दिख रहे थे। प्रसन्न भी क्यों न हों.. माँ बेटी साथ  साथ जो थीं...'जय' हो..

Saturday, July 31, 2021

एकाकी चिन्तन



बैठ अकेला सोच रहा था
क्या खोया क्या पाया
अपनों की आशाओं को
क्यों न पूर्ण कर पाया

श्वासें झोंकी, थैली उलटी
और जला दी काया
अपनी-2 इच्छा जितना
उन्होंने मुझसे पाया

आज हुई कृशकाया मेरी
धन भी शेष नहीं है पास
अन्न और चीथड़े ले 'जय'
पास न कोई आया
बैठ अकेला सोच रहा था
क्या खोया क्या पाया

☺️खा ली पी ली 'जय' हो😊

Wednesday, April 21, 2021

परधानी का परपंच

 कोई फावड़ा, कोई तराजू, कोई इमली, कोई अनार

कोई कैमरा, कोई खड़ाऊँ, कोई  लिए  किताबें चार

गर्मी में पहने कोट कोई औ ताप रहा है कोई अलाव

कोई कैरम खेल रहा 'जय',  कोई धक्का मारै कार।।


उगता सूरज, जलता दीपक, अर्धचंद्रमा और त्रिशूल

कोई चक्की, कोई भट्ठी, कोई लिए गुलाब का फूल,

जलती हुई मशाल लिए है औ कोई बल्ला-गेंद लिए

मतदाता की चुप्पी पर सोचे हर प्रत्याशी अपनी भूल।।


कहीं झोपड़ी, कहीं टोकरी, कहीं - कहीं पे खाट लिए

कोई ले दौड़ा है पतंग, कोई पाँच किलो का बाँट लिए

कोई गमला, कोई तबला, कोई कोई ले बाल्टी-लोटा

किसी के साथ में दस जन हैं कोई पाँच को साथ लिए।।


कोई सीसी रोड की माँग करे, कोई खड़ंजा दरवाजा पे

कोई हैंडपंप को माँग रहा, कोई चार कदम सबसे आगे

वे बोल रहे प्रत्याशी से, भइया! सुनि लेवो बात मेरी..!

गाँवसमाज का टुकड़ा वो नाम करयो मेरे लड़िका के।।


कहीं पे छाता, कहीं पे  आरी, कहीं पे  कन्नी पड़ी उतान

कहीं धूप में खड़ा हुआ है अनाज ओसाता हुआ किसान

टाइपराइटर, हाथी, घोड़ा, बाइसाइकिल, तीर - कमान,

भाँति भाँति के चिन्ह आये हैं, जिनसे चुनना है परधान।।

Tuesday, November 12, 2019

नहायी सी नज़र

हमें उम्मीद थी उनसे
गिरह मन की वो खोलेंगे
होठों में कम्पन होगा 
व कण्ठ का बंधन तोड़ेंगे
मेरी आँखों से टकराये
नैन उनके तो बह निकले
नहायी सी नज़र बोली
तुन्हें 'जय' अब न छोड़ेंगे

Sunday, November 10, 2019

पिंजर

एक उछलता दरिया सुंदर
दूजा है गम्भीर समन्दर
एक शुभ्र पानी भरा बादल
दूजा श्यामल नीला अम्बर
एक बना आँधी मतवाली
दूजा शांत हो चुका बवंडर
दरिया-बादल-आँधी छुपकर
हिला गए सब 'जय' का पिंजर

Tuesday, November 6, 2018

बच्ची और रुमाल

उसे देखकर जब
चाँद मुस्कुरा रहा था ...
तभी चाँदनी रात में
एक कुत्ता गुर्रा रहा था
बारम्बार ... लगातार ...
उसे देखकर...
कैक्टस मुस्कुराया ..
और फिर 'जय'
एक नन्हा सा रुमाल ..
उस बच्ची का
कफ़न बना नज़र आया !!

वृद्धावस्था

नदी के बीच मे खड़ा एक दरख़्त ..
   जिसने अनेकों सैलाबों और
      तूफानों को अपनी छाती पर सहा था ..
उसे कल
  एक नन्ही सी लहर ने गिरा दिया ..
     क्योंकि अब वह बूढ़ा जो हो गया था ..

Saturday, October 27, 2018

सच्ची में ..

27-10-2018
आज सौभाग्य-पर्व के उपलक्ष्य पर

सच्ची में ..


आज आप बहुत याद आ रहे हैं ..

यूँ तो हम प्रतिदिन बात करते हैं
घण्टों मोबाइल से 
पर आज की बात कुछ अलग है
सच्ची में ..

आप दिलासा देते हैं मुझे हर त्योहार

घर आने की और हर बार
कोई न कोई अड़चन 
सामने आ जाती और ठिठक जाते हैं 
पैर आपके वहीं पर ...
मेरी आशाओं को कुचल कर
सच्ची में ...

सामाजिक सम्बंधों को निभाते हुए

दिन तो व्यतीत हो जाता है किंतु ..
रात .. रात जिसपे आपका है अधिकार
वह रात .. जो आपके साथ होने पर
शरमाती है, सहमती है, सिसकती है
वही आज मुँह चिढ़ाती है मेरा बार बार
बोलती है, 'क्या यही है तुम्हारा प्यार'
सच्ची में ..

ढलता हुआ चन्द्रमा और खिलता हुआ सूरज

फुसफुसाते रहते हैं प्रायः मुझे देख कर
मैं जानती हूँ कि हँसेगा आज का चंद्र मुझ पर 
साथी सितारे लगाएंगे ठहाके और
आज व्योम में मेरे उपहास का होगा निनाद 
मेरी प्रबल अभिलाषा है 'जय' 
कि साक्षात सामने आकर आप
तिरोहित कर दें ढीठ चन्द्र का उपहास
सच्ची में ..

कभी कभी मैं सोचती हूँ

हाँ .. कभी कभी ही सोचती हूँ
ऐसे ही किसी अवसर पर कि
क्या डॉलर और दीनार ही 
उपलब्धि हैं हमारे वैवाहिक जीवन की !
क्या पैसे की चमक के आगे ..
मेरे यौवन की कांति कुछ भी नहीं !!
दहकते तन में ज्वालामुखी बनी भावनाओं
के लिए क्या मोबाइल ही समाधान है !!!
डर लगता है कभी कभी
सच्ची में ...

Monday, May 7, 2018

पूरक


लहरों से  सजे  सागर का मुख, बदली से  निखरता है सावन
चन्दा से सजता नील गगन, कलियों  से  सजे प्यारा उपवन
यौवन से निखरती है तरुणी,  चंचल  होती है गति  से पवन
दु:खों से मन धरती बनता, वनस्पतियों से 'जय' जल पावन